गद्यांश टेस्ट-10

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर संस्कृत के पण्डित थे। उनकी ख्याति का कारण केवल उनका ज्ञान ही नहीं था, बल्कि सदाचार भी था। वे अपनी विनम्रता, परोपकार, सच्चाई आदि गुणों से सभी के प्रिय बन गए थे। ऐसे ही एक बार कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में संस्कृत व्याकरण पढ़ाने के लिए एक अध्यापक का स्थान रिक्त हुआ। स्वाभाविक था कि कॉलेज के प्राचार्य को सर्वप्रथम ईश्वरचन्द्र का ध्यान आया। उन्होंने ईश्वरचन्द्र के पास पत्र भिजवाया। उस पत्र में उन्होंने आग्रह किया कि वे संस्कृत अध्यापक का पद ग्रहण करें। इससे कॉलेज गौरवान्वित होगा। ईश्वरचन्द्र ने पत्र पढ़ा, एक क्षण विचार किया और अपनी असहमति लिखकर भेज दी। उन्होंने लिखा, आपको व्याकरण के एक निपुण अध्यापक की आवश्यकता है। मैं सोचता हूँ कि व्याकरण में मैं इस योग्य नहीं हूँ। इस विषय में मुझसे अधिक विद्वान् मेरे मित्र तारक वाचस्पति हैं। यदि आप उनकी नियुक्ति कर सकें तो मुझे बहुत खुशी होगी कि आपने एक योग्य व्यक्ति का चुनाव किया है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रस्ताव को कॉलेज की प्रबन्ध समिति ने सहर्ष मान लिया।